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मेरे जन्म पर मेरा अधिकार नहीं था। पर अपनीमृत्यु को मैं निश्चित ही चुन सकता हूं। मैं धरती पर अपने जन्म का कारण नहीं जानता, पर मैं अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित ही जानता हूं।
यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए है जो उच्चतम सोपान को पाने की अभिलाषा रखता है। इस पुस्तक को पढ़कर आप यह जानेंगे कि कोई व्यक्ति उसके जन्म या माता-पिता या परिवार या रंग या नस्ल या पंथ या लिंग या मज़हब के कारण श्रेष्ठ नहीं होता, बल्कि उसे श्रेष्ठ बनाते हैं - उसके उच्च कर्म, उसका उज्जवल चरित्र और उसकी तेजस्विता।
यह पुस्तक हिन्दू-समाज में व्याप्त जन्म-आधारित जाति व्यवस्था को संबोधित करती है। यह पुस्तक इस धरा की प्राचीनतम सभ्यता – हिन्दू सभ्यता के सदियों तक पादाक्रांत होने, लुटने और तहस-नहस होने के कारणों पर प्रकाश डालती है।
कभी इस धरा के लगभग आधे हिस्से पर बसनेवाली सभ्यता आज एक उपमहाद्वीप के आधे हिस्से तक सिमट कर रह गई है। गलती कहां हुई?
सम्पूर्ण चराचर के प्राणियों को एक परमपिता परमेश्वर की संतान मानने वाले एकमात्र धर्म पर आज उन्हीं में से कुछ संतानों को दलित बनाने का लांछन लगाया जा रहा है। दलित कौन हैं? हिन्दू धर्म के अछूत? उन्हें अछूत बनाया किसने? क्या वे कभी मुख्यधारा में जुड़ेंगे भी या सदा के लिए विस्मृति की गर्त में ही रह जाएंगे? क्या भारतवर्ष इसी जीर्णशीर्ण दशा में रहेगा या इससे उबरेगा भी?
यह पुस्तक जाति-व्यवस्था के सभी ज्वलंत प्रश्नों को संबोधित कर उनका समाधान प्रस्तुत करती है। भारत की एकता और अस्तित्व के लिए यह पुस्तक अति आवश्यक है।
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