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संस्कृत भाषा देवों की भाषा है। यह अत्यन्त सरल, स्पष्ट तथा सुव्यवस्थित है। मंत्रों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति को यह बात मन में अच्छी तरह बिठा लेनी चाहिए कि इसे बिना किसी कठिनाई के शीघ्र ही सीखा जा सकता है और कुछ ही दिनों में सामान्य व्यक्ति भी संस्कृत भाषा को लिखना, पढ़ना, बोलना सीख सकता है।
संस्कृत भाषा के कुछ विशेष अक्षर उनके नाम तथा बोलने की विधि:-
इस (.) आकृति वाले अक्षर को “अनुस्वार” कहा जाता है तथा नाक से वायु निकालते हुए बोला जाता है, उस समय मुँह बन्द रहता है जैसे “रामं”।
इस ( ँ) आकृति वाले अक्षर को “अनुनासिक” कहा जाता है और यह अक्षर भी नासिका से वायु निकालते हुए बोला जाता है। उस समय मुँह से भी कुछ कुछ वायु निकलती है। जैसे “बोलूँ कहूँ”।
यह ( ) अक्षर “अयोगवाह हस्व” कहा जाता है इस अक्षर का उच्चारण कांसे के पात्र पर डण्डा मारने से जो ध्वनि निकलती है वैसे होता है जैसे “अग्न आयूषि…"
यह ( ꣳ ) अक्षर “अयोगवाह दीर्घ” कहा जाता है इसका उच्चारण भी कांसे के पात्र पर डण्डा मारने से जो ध्वनि निकलती है वैसे होता है किन्तु इसका उच्चारण लम्बा करना चाहिए जैसे “सर्व वै पूर्णꣳ स्वाहा”।
इस ( ळ ) अक्षर को “यम” कहते हैं। इसका उच्चारण हिन्दी के ड और ल को मिलाकर करने के समान होता है अर्थात् जीभ को ऊपर से नीचे पटकते हुए किया जाता है।
इस (:) अक्षर को “विसर्ग” कहा जाता है इसका उच्चारण “ह” अक्षर से मिलता है जैसे “रामः”।
यह (ऽ) चिह्न “अवग्रह” कहा जाता है। यह चिह्न खाली स्थान का प्रतीक है। इसका उच्चारण कुछ भी नहीं होता है।
किसी अक्षर के नीचे (क्) इस प्रकार की टेढी लकीर होती है उसे “हलन्त” अक्षर कहते है उस अक्षर को बिना स्वर के अर्धमात्रिक रूप में बोलना चाहिए यथा “तस्मात्, सम्यक्, पृथक्, विद्वान्” इत्यादि ।
इस ( ष ) अक्षर को “मूर्धन्य पकार” कहते हैं। इसका उच्चारण मुँह में मूर्धा स्थान अर्थात् तालु के उपर से वहा जीभ लगाकर करना चाहिए।
इस (श) अक्षर को “तालव्य शकार” कहते हैं इस अक्षर को मुँह के अन्दर तालु स्थान से अर्थात् दान्तों के उपर से व दान्तों के उपर से वहा जीभ लगाकर उच्चारण करना चाहिए।
इस (स) अक्षर को “दन्त्य सकार” कहते हैं इस अक्षर का उच्चारण दान्तों में जीभ लगाकर करना चाहिए।
संस्कृत भाषा में (ज्ञ) इस आकृति वाले अक्षर में तीन अक्षर मिले होते हैं वे हैं (ज्+ञ्+अ) अतः इनका उच्चारण ज् + ञ् + अ को ही मिलाकर करना चाहिए न कि (ग्य) या (ग्न) या (ढून) ।
संस्कृत भाषा में अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, औ आदि अक्षर “स्वर” कहलाते हैं। इनके तीन भेद होते हैं। जिनको ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत कहते हैं।
हस्व - इसका उच्चारण “एकमात्रिक” होता है अर्थात् जितने समय में हाथ की कलाई की नाड़ी एक बार धड़कती है उतने समय में इसका उच्चारण करना चाहिए। उदाहरण अ, इ, उ ।
दीर्घ - इसका उच्चारण “द्विमात्रिक” होता है अर्थात् जितने काल में हाथ के कलाई की नाड़ी दो बार धड़कती है उतने काल में करना चाहिए। उदाहरण आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
प्लुत - इसका उच्चारण “त्रिमात्रिक” होता है अर्थात् जितने काल में हाथ के कलाई की नाड़ी तीन बार टिक् टिक टिक करती है उतने काल तक करना चाहिए। उदाहरण ओउम् ।
संस्कृत भाषा में क्, ख्, ग्, घ् आदि अक्षर “व्यंजन” हलाते हैं। ये सभी व्यंजन अर्धमात्रिक होते हैं और इनका उच्चारण बिना स्वर के नहीं हो सकता। संस्कृत भाषा में (हिन्दी भाषा में भी) व्यजनों का उच्चारण प्रायः व्यंजन के साथ स्वर को मिलाकर सिखाया जाता है जैसे (क् + अ = क), (ख् +अ = ख) इत्यादि। बिना स्वर को संयुक्त किये व्यंजनों का उच्चारण ठीक प्रकार से होना कठिन होता है।
संस्कृत के मंत्रों - श्लोकों का उच्चारण करनेवाले व्यक्ति को चाहिए कि प्रारंभिक काल में वह मन्त्रों का उच्चारण धीरे-धीरे अर्थात् कम गति से करे।
संस्कृत के मंत्रो का उच्चारण सीखनेवाले व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रारंभिक काल में मन्त्रों का उच्चारण ऊँचे स्वर से अर्थात् जोर से करे, जिससे सीखाने वाला त्रुटियाँ निकाल सके और सुधार करा सके।
प्रारंभिक काल में मन्त्रों में आये हुए बड़े-बड़े अर्थात् लम्बे-लम्बे शब्दों को संधि विच्छेद करके (टुकड़े करके) बोलना चाहिए। अभ्यास होने पर लम्बे (समस्त पद) को एक साथ बोल सकते हैं। यथा जगतस् - तस्थु - सरच, दिग्- अग्निर - अधिपतिर - असित।
मंत्रों में आए शब्दों के ऊपर या कहीं कहीं नीचे खड़ी (अ॒) या आड़ि (त॑) रेखा होती है ये मन्त्रों के “स्वर चिह्न” है। इनका सामान्य पाठ करने वाले को कोई ध्यान नहीं देना चाहिए।
इसी प्रकार से कही दो या दो से अधिक व्यंजन एक साथ, स्वर के साथ मिले होते हैं। ऐसे संयुक्त अक्षरों का उच्चारण का अभ्यास भी अच्छी प्रकार से सिख लेना चाहिए। इनके उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं -
ज्+ञ्+अ = ज्ञ
द्+व्+अ = द्व
ह+व्+अ = ह्र
ह्+न्+अ = ह्य
द्+य्+अ = द्य
क्+ष्+अ = क्ष
श्+र्+अ = श्र
ह+र्+अ = हू
ह+य्+अ = ह्य
द्+र्+अ = द्र
द्+ध्+अ = द्ध
क्+ र् +अ = क्र
त्+र्+अ = त्र
ह+म्+अ = ह्म
क्+त्+अ = क्त