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एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे ।
महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवंविधं नरम् ॥५॥
अर्थ: हे महर्षे! उक्त गुणों वाले महापुरुष का जीवनचरित्र श्रवण करने के लिये मेरे चित्त में अत्यन्त उत्साह है, कृपा कर कथन करें।
श्रुत्वा चैतत्त्रिलोकज्ञो वाल्मीकेर्नारदो वचः ।
श्रूयतामिति चामन्त्र्य प्रहृष्टो वाक्यमब्रवीत् ॥६॥
अर्थ: इस प्रकार वाल्मीकि के वचन को सुनकर त्रिलोकज्ञ = कर्म, उपासना तथा ज्ञान कांड रूप वेदत्रयी के जानने वाले नारद प्रसन्न होकर बोले कि:-
बहवो दुर्लभाश्चैव ये त्वया कीर्तिता गुणाः ।
मुने वक्ष्याम्यहं बुद्ध्वा तैर्युक्तः श्रूयतां नरः ॥७॥
अर्थ: हे ऋषे! जो आपने गुण कथन किये हैं वह प्रायः सर्वसाधारण पुरुषों में दुर्लभ हैं। परन्तु मैं उस महापुरुष का चरित्र कथन करता हूं जो उक्त गुणों से संपन्न है।
इक्ष्वाकुवंशप्रभवो रामो नाम जनैः श्रुतः ।
नियतात्मा महावीर्यो द्युतिमान् धृतिमान् वशी ॥८॥
अर्थ: इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न एक महापुरुष “रामचन्द्र” है जो जितेन्द्रिय, महावीर्य, कान्तिमान्, धैर्यसंपन्न और वशी = आकर्षणशील है।
बुद्धिमान्नीतिमान् वाग्मी श्रीमाञ्शत्रुनिबर्हणः ।
विपुलांसो महाबाहुः कम्बुग्रीवो महाहनुः ॥९॥
अर्थ: बुद्धिमान्, नीतिज्ञ, मधुरभाषी, श्रीमान् और शत्रुओं को पराजित करने वाला है। जिसके वृषभ के समान कंधे, बड़ी भुजा, कंबू = शंख के समान ग्रीवा और जिसकी हनु = ठोड़ी भरी हुई है।
महोरस्को महेष्वासो गूढजत्रुररिंदमः ।
आजानुबाहुः सुशिराः सुललाटः सुविक्रमः ॥१०॥
अर्थ: जिसकी छाती विशाल है, वक्ष्यस्थलगत स्थियें मांसल होने से दृष्टिगत नहीं होतीं, जो बड़े धनुष को धारण करने वाला तथा दीर्घवाहू विशाल मस्तक, छत्राकार = गोल सिर वाला और मनोहर गति वाला है।
समः समविभक्ताङ्गः स्निग्धवर्णः प्रतापवान् ।
पीनवक्षा विशालाक्षो लक्ष्मीवाञ्शुभलक्षणः ॥११॥
अर्थ: जो न बहुत लंबा और न बहुत ठिगना, समान अंगों वाला = सुडौल शरीर, सुदर्शन, प्रतापशाली, विशाल नयन और लक्ष्मीवान् इत्यादि अनेक शुभ लक्षण युक्त हैं।
धर्मज्ञः सत्यसंधश्च प्रजानां च हिते रतः ।
यशस्वी ज्ञानसंपन्नः शुचिर्वश्यः समाधिमान् ॥१२॥
अर्थ: धर्मज्ञ, सत्यप्रतिज्ञ, प्रजाहितकारी, यशस्वी, ब्रह्मज्ञानी, वाह्याभ्यन्तर शौचसंपन्न, सुशिक्षित तथा योगसंपन्न है।
प्रजापतिसमः श्रीमान्धाता रिपुनिषूदनः ।
रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता ॥१३॥
अर्थ: प्रजापति ब्रह्मा के समान शास्त्रज्ञ, प्रजा के धारण पोषण में समर्थ, शत्रु हन्ता, सब जीवों का रक्षक और वर्णाश्रमों के धर्मों की मर्यादा का स्थापन करने वाला है।
रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता ।
वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठितः ॥१४॥
अर्थ: यज्ञादि श्रौतकर्मों का अनुष्ठाता, अपने सेवकों का पालक, वेद वेदांगो के तत्व को जानने वाला और विशेषतः धनुर्वेद में निपुण है।
सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञो स्मृतिमान् प्रतिभानवान् ।
सर्वलोकप्रियः साधुरदीनात्मा विचक्षणः ॥१५॥
अर्थ: सांख्य, योगादि पद दर्शनों का वेत्ता, स्मृतिशाली, प्रतिभाशाली, सब लोगों का प्रिय सदाचारी, क्षात्रधर्म से देदीप्यमान और लौकिक तथा अलौकिक सब क्रियाओं में पंडित है।
सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः ।
आर्यः सर्वसमश्चैव सदैकप्रियदर्शनः ॥१६॥
अर्थ: आर्य = सर्व पूज्य, सर्वसम = सुख दुःख में हर्ष विषाद से रहित अथवा शत्रु, मित्र तथा उदासीन में समदर्शी, प्रियदर्शन और नदियों से समुद्र की भांति सदा ही साधुओं का आश्रयणीय है।
स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्धनः ।
समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव ॥१७॥
अर्थ: जो सब गुणों से संपन्न, कौसल्या के आनन्द को बढाने वाला, गंभीरता में समुद्र की भांति और धीरता में हिमालय के समान है।
विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत्प्रियदर्शनः ।
कालाग्निसदृशः क्रोधे क्षमया पृथिवीसमः ॥१८॥
अर्थ: पराक्रम में विष्णु के समान, सोम=चन्द्रमा की भांति दर्शन से ही आल्हादकारी, युद्ध समय शत्रुओं को दंड देने के लिये क्रोध में कालरूप अग्नि के समान और क्षमा में पृथिवी के सदृश है।
धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः ।
तमेवंगुणसंपन्नं रामं सत्यपराक्रमम् ॥१९॥
अर्थ: धर्म के लिये धन व्यय करने में कुबेर के समान और सत्य भाषण करने में साक्षात् धर्ममूर्ति है, उक्त गुणों से संपन्न अमोघ बलशाली और:-
ज्येष्ठं श्रेष्ठगुणैर्युक्तं प्रियं दशरथः सुतम् ।
प्रकृतीनां हितैर्युक्तं प्रकृतिप्रियकाम्यया ॥२०॥
अर्थ: जो सब से बड़ा, बड़ों के गुणों से युक्त दशरथ का प्यारा पुत्र, सबकी भलाई में तत्पर रहने वाला है।
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